Jaane Kahaa ??? The Revolution भाग 17
अपडेट 17
थोड़ी देर के बाद राजेश्वरीदेवी और क्रिष्ना दोनो अपने अपने बच्चे को लेकर नीचे आई। विक्रम का ध्यान पहलीबार बार बच्चे पर गया। वो देखता ही रह गया। मछली (फीश) जैसे आकर की नीली नीली आँखे और गालो मे खंजन, विदेशी हवा बच्चे को भी लग चुकी थी। एक मासुम सा चेहरा था। थोड़ी देर दोनो बच्चे को शांत कराने मे गयी।
फिर किशोरीलाल आगे आया और उसने विक्रम को कहा,”विक्रम, इस बच्चे की तरफ देख, मान लो हमारे साथ क्रिष्ना आई भी और रही भी लेकिन इस बच्चे का क्या दोष ? ये तो अपने बाप के प्यार से वंचित रह जायेगा ना। बडा होकर पुछेगा की मेरे पिता कौन है, हम लोग क्या जवाब देंगे ? क्रिष्ना क्या कहेगी की उसका जन्म उसके बाप की जिद से हुवा है। बडा हो के क्या पायेगा जब उसको बाप का प्यार ही नही मिला तो। तु खुद जानता है की अगर एक पिता के पास टाइम ना हो तो क्या गुजरती है हम पर। तु खुद यही यही स्थिती का शिकार है। तु तो अपने बाप को कम से कम देख तो पाता था, ये बच्चा तो कभी बाप को जान ही नही पायेगा। सोच तेरी मानसिक हालत ऐसी है तो ये बच्चा ना जाने क्या करेगा।”
इतना कहकर किशोरीलाल ने बच्चे को उठा लिया, बच्चा फिर से अन्जान का स्पर्श पाकर रोने लगा। विक्रम की नज़र उस बच्चे पर ही टिकी हुई थी।
किशोरीलाल ने बच्चे का मूह उसकी तरफ किया। बच्चे की नज़र विक्रम पर पड़ी। वो रोना छोड़कर विक्रम को देखने लगा। दोनो की नज़र एक हुई। किशोरीलाल ने कहा,”देख ले इस मासुम को और बोल दे की ये तेरा खुन नही है, वीकी तेरी कसम हम लोग तेरी ज़िंदगी से चले जायेंगे। मै वादा करता हु की अगर आज तूने इसे नही अपनाया तो मै जीवनभर तेरे जीवन मे तो क्या तेरा मूह भी नही देखने आउंगा।”
फिर भी विक्रम चुप रहा और लगातार उस बच्चे को देख रहा था। आख़िर राजेश्वरीदेवी आगे आई और जय को किशोरीलाल को दिया और क्रिष्ना के बच्चे को गोद मे उठाकर उची आवाज मे बोली,”ठीक है आज से क्रिष्ना और मै हम दोनो इस की मा है और आप इस के बाप है। ये लावारीश नही आज से हमारा बच्चा है। मै इसे संस्कार दूँगी और जीवनभर यहा आने नही दूँगी। चलो क्रिष्ना मेरे साथ चलो, यहा तुम्हारी और तुम्हारे बच्चे की सुन ने वाला कोई नही है। और बंसीभैया आप भी चलो यहा से। कोइ जरुरत नही यहा नौकरी करने की।”
किशोरीलाल भी जय को उठाकर बंसी का हाथ पकड़कर उसे बाहर ले जाते हुए बोला,”चलो बंसी आज वीकी को दोस्ती और रिश्तेदारी से हमदोनो मुक्त कर दे, चलते है वीकी, हमे माफ़ कर देना अगर हमने तेरी ज़िंदगी मे कोई दखल दी हो तो, आज से ना ही तो बंसी तेरी रीपोर्ट करेगा और ना ही तो तुजे अपनी दौलत के लिये किसी के पास हाथ फैलाना पड़ेगा। लेकिन एक बात हमेशा याद रखना दोस्त, दौलत कभी भी तुजे संभलने नही देगी। तु इस दौलत के सहारे कभी ज़िंदगी का समुन्दर पार नही कर पायेगा और अगर उस बाबा की वाणी मे सच्चाइ है तो मेरा बेटा तेरी कोई ना कोई बेटी से विवाह ज़रूर करेगा। मूज़े परमात्मा की शक्तियो पे परम विश्वास है।”
इतना कहकर सब के कदम बाहर की और जाने लगे।
अचानक राजेश्वरीदेवी के हाथो को धक्का लगा और बच्चा विक्रम के हाथ मे था। विक्रम की आँखो से आंसुओ की धारा बहती दिखाई दी और विक्रम लगातार बच्चे को देखता जा रहा था। राजेश्वरीदेवी ने कुछ बोलने की कोशिश की, लेकिन किशोरीलाल ने उसका मूह अपने हाथो से बंध किया और दूसरे हाथ से चुप रहने का इशारा किया।
बच्चा बिल्कुल चुप था और विक्रम की ओर एक नजर से देख रहा था। दो साल के बच्चे ने अपने गोरे गोरे हाथो से विक्रम की आँखो से बहते हुए पानी को छुआ और मुस्कुराया। मुस्कुराने से उसके गालो के खंजन और गेहरे हुये और स्माइलिंग फेस देखकर विक्रम ने उसे गले लगा लिया और उस की आँखे बंध हुई और आँखो से आसुओ की धारा धीरे धीरे गालो तक बहने लगी। बच्चा भी विक्रम से लिपट गया, मानो के जैसे बेसहारा को सहारा मिल गया। विक्रम का हाथ अपने आप ही बच्चे की पिठ पर सहलाने लगा लगा और बच्चा लिपट चुका था। क्रिष्ना और बंसी देखते ही रह गये। राजेश्वरीदेवी ने किशोरीलाल को देखा और किशोरीलाल ने राजेश्वरीदेवी को, दोनो की आँखो मे पानी उतर आया था लेकिन चेहरे पे मुस्कान थी और बंसी की आँखो ने तो बहना भी शुरू कर दिया।
क्रिष्ना पहले तो देखती रह गयी। फिर वही दरवाजे के पास गीरी और घुटनो के सहारे उल्टा बैठकर एकदम से तुट गइ और बाद मे तो वो खुल्ले मन से रो पड़ी। राजेश्वरीदेवी अचानक से उस के पास आइ और वो भी घुटनो पर बैठ गइ और उस ने क्रिष्ना को सहारा देना चाहा,पर आज क्रिष्ना की बहुत सालो की तपस्या पूरी हो रही थी।
और दोस्तो एक बात को आप भी मानते ही होंगे की जिस चाह को आप ने जीवनभर अपना सपना बनाया हुवा है और इस सपने को पूरा करने मे आप ने अपनी ज़िंदगी दाव पे लगाई होती है और वो आप को अचानक आसानी से या मुश्किल से मिल जाता है तब उस वक़्त आप की ज़िंदगी की सारी हिम्मत एक्साथ टूट जाती है। हमारे शरीर का रीएक्शन ऐसा हो जाता है जैसे एक लाश पड़ी हो। हम थोड़ी देर के लिये मानो बेजान से हो जाते है।
ऐसा इसीलिए होता है की ज़िंदगी मे कुछ और चाह ही बाकी नही रहती। अगर कोई संत, साधु या ऋषिमुनि होते तो उसको इस स्थिति का एहसास होता है और वो निर्मोही होकर इस स्थिति को सहन कर जाते है, परंतु एक सामान्य मनुष्य कभी भी अपनी अचानक मिलती मंझिल को सहन नही कर पाता और या तो वो टूट जाता है, या पागलो जैसी हरकत करने लगता है।
क्रिष्ना का भी यही हाल था, बरसो की तपस्या आज सिद्ध हो रही थी इसिलिये वो टूट चुकी थी। इतती भयानक और दर्दनाक ज़िंदगी के बाद उसके बच्चे को विक्रम ने सिर्फ़ गले लगाया था फिर भी मानो उसे अपनी मंझिल मिल गयी थी। शायद वो ज़िंदा ही उसके बच्चे के लिये थी। उसे अब ज़िंदगी का कोई मोह नही था। उसकी कोई चाह बाकी नही रह गयी थी।
राजेश्वरीदेवी ने उसको सहारा देने की कोशिश की पर क्रिष्ना नीचे अपने घुटनो के सहारे बैठ गयी और गहरी आहे उसके गले से निकल रही थी और मूह से आवाज़ नही निकल रही थी। उसे याद आ रहा था उसका दर्द, जो विक्रम ने उसे हमबिस्तर के वक़्त दिया था। 3 दिन तो दर्द ही नही गया था। उसकी चमडी के चिथडे उड चुके थी उस वक़्त विक्रम के कीये ने, दर्द तो ऐसा था की वो सह पाये उस के पह्ले तो बेहोश हो चुकी थी। विक्रम ने उसकी बेहोशी मे भी उसको नही छोडा था। वो तो बाद मे उस नौकर की बेटी जब कमरे मे उसे मिलने आई, उसने बात बताई थी की विक्रम को तो बेहोशी की हालत मे वहा से नीकाला गया था और क्रिष्ना को वहा से बीना कपडो मे रूम से दूसरे रूम मे ले जा रहा था, उस वक़्त क्रिष्ना के जिस्म से खुन टपक रहा था। शायद कोई अंदर की नस टूट चुकी थी। क्यूकी बच्चे के जन्म के टाइम भी बहुत मुश्किल से डीलीवरी हुई थी। लेकिन दोनो टाइम क्रिष्ना को शायद इश्वर ने बचा लिया था। उपर से बच्चे को कहा ले जाया जाये ये सोच सोच के दो साल मुश्किल से बिताये थे उसने।
आज ये सब सोचकर वो निहाल हो चुकी थी। । मुश्किल से राजेश्वरीदेवी ने उसे उठाया और अपने गले लगाया। करीब 10 मीनीट से कोई कुछ नही बोला था। सिर्फ़ क्रिष्ना के गले से सिसकीया निकली जा रही थी जिस पर क्रिष्ना का कोई कंट्रोल नही था। उसकी आँखे लाल हो चुकी थी, इतना आँसू वो पीछले 10 मीनट मे बहा चुकी थी।
आख़िर राजेश्वरीदेवी बोली,”बस कर क्रिष्ना देख तेरे बच्चे को बाप मिल गया है। अब क्यू रो रही है।”
“इ...इ...से....ब..ब..बे..हने...द..ओ....भा....भ..भी...,ब...हुत...बहु...त...सहा....है..है...मै...मैने.....थ...थक..चु..की...हु...मै....मै..अ....अब........मु....मुजे.....क...क....कुछ...न..नही...च...चा...चा...हिये,...अब....म..म...मुज...मे....ह...ह..हिम..हिम्मत...न..नही....ह..है।” क्रिष्ना अभी भी सही से बोल नही पा रही थी।
राजेश्वरीदेवी ने बंसी को इशारा किया और बंसी ने अपनी बहन को बाहो मे भर लिया। विक्रम के सामने वो कुछ नही बोल पाया। क्रिष्ना अब बंसी को लिपटकर सिस्किया ले रही थी।
विक्रम अब बच्चे को हाथ मे उठाये क्रिष्ना की हालत देख रहा था और वो धीरे धीरे क्रिष्ना के पास आया और अपना एक हाथ क्रिष्ना के कन्धो पर रखा। क्रिष्ना ने वही बंसी के कन्धो से ही आँखे उठाकर विक्रम के सामने देखा और सिस्किया लेते हुये, अपनी बडी बडी आंखो जो शराब के नशे जैसी लाल हो चुकी थे उस से विक्रम की तरफ नजरे मीलाइ। विक्रम ने क्रिष्ना को अपनी ओर खीचना चाहा लेकिन क्रिष्ना का शरीर बंसी की छाती से हटा नही पाया तो विक्रम ने एक हाथ उसके कंधे को मजबुती से पकड़ कर अपनी ओर किया और क्रिष्ना को ज़बरदस्ती अपने सीने से लगा दिया। अब क्रिष्ना का रहा सहा भी बाँध टूट पड़ा और वो खुल्ले मन से रोने लगी। लगातार कुछ वक़्त तक उसकी बड़ी बड़ी रोने की आवाज़ उस दीवानखाने मे गुंजती रही। अब राजेश्वरीदेवी की आँखो से भी आँसू निकल आये थे। एक स्थितप्रग़्न अवस्था मे केवल किशोरीलाल ही खड़ा था। फिर भी आज उस की आखो के कोने पर कुछ तो जम गया था। क्रिष्ना ने अपना मूह विक्रम की छाती मे छुपाकर उस के कपडो को मजबुती से लिपटकर रोना शुरू कर दिया था। क्रिष्ना का शरीर उस का साथ नही दे रहा था और जिन मजबुती से उस ने विक्रम के शर्ट को पकड रखा था वो धीरे धीरे फट रहा था। क्रिष्ना के पाव डगमगा रहे थी और विक्रम एक हाथ मे बच्चा और दुसरे हाथ से मजबुती से क्रिष्ना को पकड के उसकी पीठ को सहलाता रहा और उसकी आँखो से भी लगातार आँसू निकल रहे थे। बंसी भी रोने लगा था और बच्चा ये सब देखकर रोने लगा और साथ मे नन्हे जय ने भी आवाज़ निकालनी शुरू कर दी।
पुरे माहोल मे खुशी और गम दोनो सुरते एकसाथ बहने लगी थी। ये कुदरत की ऐसी लीला थी जिस का कोई मोल नही। शायद कुदरत ने यही सोचा था की बाप बेटे का संगम 2 साल के बाद हो। किशोरीलाल सोच रहा था की विक्रम की ज़िंदगी का एक नया अध्याय आज शुरू हो रहा है। अब कौन से अध्याय को अच्छा करना बाकी रह गया है। शायद अब विक्रम और क्रिष्ना की शादी को कोई नही रोक सकता और अगर क्रिष्ना विक्रम की पत्नी बनकर आती है तो विक्रम का सुधरना निश्चित है। इसीलिये किशोरीलाल ने मन ही मन मे परमात्मा का आभार प्रकट किया और शायद उसका जोधपुर मे आना सफल हो चुका था और काम भी सम्पुर्ण हो चुका था। वो सोच रहा था की जल्द ही जल्द से विक्रम की शादी क्रिष्ना से करवा के वो यहा से निकल जाये और जल्दी ही जल्दी विक्रम को उस एग्रीमेन्ट से आजाद कर दे और आगे की ज़िंदगी मे कोई तूफान ना आये और नेक्श्ट जनरेशन के लिये तैयार हो जाये। । वहा खड़े हुए बंसी और राजेश्वरीदेवी भी सुकुन की सासे ले रहे थे की अब कोई मुश्किले, बाकी नही रह गयी और अब आगे कोइ खतरा नही।
बडी मुश्किल से सब ने क्रिष्ना को सहारा दिया। विक्रम ने उसे पास के सोफे पर बिठाया और खुद बच्चे को लेकर उस के पास बैठ गया। स्वस्थ होने के बाद सब वहा धीरे धीरे बैठ गये। बंसी दौडा दौडा सब के लिये पानी ले आया और मुश्किल से क्रिष्ना ने थोडा सा पानी पीया और फिर से चेहरा पलटकर रोने लगी।विक्रम को मूह से माफी मांगने की कोई जरुरत नही थी। हा उसने क्रिष्ना का चेहरा अपने हाथो से अपनी और किया और उस के चेहरे को सब के साम ने चुम लिया और सिर्फ़ इतना बोला,”क्रिष्ना आज से तू और मेरा बच्चा इस हवेली पे राज करोगे और मेरे बेटे के बंसीमामा यही हमारे साथ हमारी जीवन की रोनक बने रहेंगे। मैं सुनंदा को चाहता था इसीलिये तेरे प्यार को ठुकराया था। अब आज सुनंदा भी नही है और मेरे हाथो तेरी और बरबादी मै होने नही दूँगा। मै तेरे प्यार को स्वीकार करता हु, क्या तू मेरे खाली दिल को अपने पवित्र प्यार से भरेगी?”
बस क्रिष्ना को हा कहने की कोई जरुरत नही थी। वो सिर्फ़ रोती रही और विक्रम हाथ सहलाता रहा। फिर सभी ने मिलकर दोनो बच्चे को शांत किया। एक लड़की को पति और एक बच्चे को अपना बाप मिल चुका था।
लेकिन किसी को ये पता नही था की विक्रम और क्रिष्ना को एक होने से पहले कौन सी आंधी आनेवाली है जो विक्रम-क्रिष्ना और किशोरीलाल-राजेश्वरीदेवी ये दोनो जोडीयो के जीवन मे सुनामी की तरह लपेट मे लानेवाली है।
थोड़ी ही देर मे वातावरण शांत हो चुका था। सब ने साथ मिलकर दोपहर का खाना शाम को 5 बजे खाया, क्रिष्ना की हालत खाने जैसी भी नही रही थी। वो खड़ी भी नही हो पा रही थी। एक ही दिन मे शायद उसके पैर को मानो लकवा लग गया था। वो बच्चे को गोद मे लिये बैठी थी। दोनो बच्चे फिर से थक के सो चुके थे। किशोरीलाल ने खाने के बाद दिवानखने मे सब बैठे हुए थे वहा बात छेडी:
किशोरीलाल,”वीकी यहा आये हुए हमे 5 दिन हो चुके है। अब हमे यहा से जाना होगा। अगर तू जल्दी ही शादी करेगा तो हमे यहा वापस भी तो ज़रूर आना होगा। तो कल सुबह की ट्रेन से हम वापस जा रहे है।”
विक्रम,”केपी अभी अभी कुछ देर पहले तो मेरी ज़िंदगी सवर रही है,अब मेरी खुशी मे शामिल नही होंगे क्या?”
राजेश्वरीदेवी,”विक्रमभाइ, हमारी जूनागढ़ मे भी कुछ जिम्मेदारिया है, बस मेहमान बन के आये थे और मेहमानो को कुछ समय के बाद ज़रूर वापस जाना चाहिये। वैसे भी थोड़ा वक़्त अगर क्रिष्ना के साथ आप गुजारो, उसे आप की सख्त जरुरत है और फिर हम लोग शादी मे ज़रूर वापस आयेंगे।”
विक्रम,”क्या भाभी अभी तो ठीक से मैने अपने दामाद को देखा तक नही।”
राजेश्वरीदेवी और किशोरीलाल एकदुसरे के सामने देखने लगे और फिर किशोरीलाल खड़ा हुवा,”वीकी सच मे क्या ये रिश्ता तुजे मंजूर है?”
विक्रम कुछ नही बोला और चुप चाप बैठा रहा। किशोरीलाल थोड़ी देर सब के चेहरे को देखता रहा और फिर पुछा,”वीकी क्या तू मजाक कर रहा है या फिर अभी अभी जो तूने कहा वो सच था?”
“अरे सच है भाई । मूज़े ये रिश्ता मंजूर है आ गले लग जा मेरे दोस्त। तु ही तो है जो मेरी ज़िंदगी बना रहा है दोस्त।” विक्रम ने खड़ा होकर हाथ फैलाया।
दोनो दोस्त गले मिल गये सब ने (क्रिष्ना के अलावा) ताली बजाकर इस नये रिश्ते का स्वागत किया। एक क्रिष्ना सिर्फ़ ऐसे ही बैठी रही। उसे कुछ पल्ले नही पड रहा था की कौन सा नया रिश्ता बन रहा है और क्यू ये लोग गले मिल रहे है? क्युकी वो अभी भी अपने हाल मे ही बिखरी हुइ थी।
इस की एक वजह थी की अभी कुछ ही घंटे पहले जो गिरनारवाले बाबा की कहानी उसे बताई गयी थी वो कहानी वो भूल चुकी थी। एक तो आज ही उसे नयी ज़िंदगी मिल रही थी इसिलिये तो वो सबकुछ भूल बैठी थी। इसीलिए उसके पल्ले कुछ नही पड रहा था। । क्रिष्ना का ये चेहरा देखकर विक्रम ने उस की ओर देखा और वो समज गया की क्रिष्ना के दिमाग मे कुछ नही पड रहा है तो उसने सब से पहले बहाना बताकर बंसी को रसोइघर मे रवाना किया और फिर किशोरीलाल के कान मे पुछा,”यार, क्रिष्ना को वो गिरनारवाले बाबा की कहानी बताई है क्या?”
किशोरीलाल ने हा बोला तो विक्रम खुश हो गया और फिर क्रिष्ना की तरफ घुमकर बोला,”हा तो फिर आज से जय मेरा दामाद लेकिन एक प्रोब्लेम है?”
राजेश्वरीदेवी ने कुछ आशंका से पुछा,”अब क्या प्रोब्लेम है विक्रमभैया?”
विक्रम ने कहा,”पहले क्रिष्ना को याद तो दिलाओ वो गिरनारवाली बाबा की कहानी।“
राजेश्वरीदेवी ने क्रिष्ना को याद दिलाया तो तुरंत उसको याद आ गया और वो आकाश की और देखते हुये सिर्फ इतना ही बोल सकी,”शायद भगवान का चमत्कार है भाभी।”
विक्रम तुरंत उसके पास जा के खड़ा हुवा और बोला,”इस का मतलब तू बेटी पैदा करेगी क्या?”
अचानक ऐसे मीठे हमले से क्रिष्ना चौक पड़ी और उसको खुद बच्चे के जन्म के वक़्त जो परेशानी हो रही थी वो याद आ गया और विक्रम के साथ की वो रात याद आ गइ और वो जोर से आँखे बन्ध कर गयी। फिर आँखे खोलकर इतना ही बोली,”क्या?”
विक्रम उसकी बड़ी बड़ी आँखो मे डर देखकर थोड़ी देर देखता ही रहा और फिर शरारत भरे स्वर मे बोला,”अरे उस गिरनारवाले बाबा कहानी से ये केपी का बेटा जय हमारा दामाद हुवा ना, तो इस नन्हे जय के लिये एक नन्ही सी कन्या तो होनी चाहिये ना तो वो तू देगी या मूज़े कही ओर…।” इतना आधा बोलकर उसने बड़े ज़ोर से हसना शुरू किया ।
क्रिष्ना को अब बात समज मे आई और वो शरमा के नीचे देखने लगी। लेकिन विक्रम हसता ही जा रहा था और आख़िर क्रिष्ना ने धीमे स्वर मे कहा,”आप के दोस्त का ख़याल तो रखिये वो यहा खड़े है और आप…।”
“अरे केपी से क्या शरमाना वो तो सीधी बात है ना जय के लिए एक कन्या तो होनी ही चाहिये ना?” विक्रम अभी भी क्रिष्ना को छेडने के मुड मे ही था।
अब राजेश्वरीदेवी भी हसकर बीच मे बोली,”वो देगी विक्रमभाइ ज़रूर देगी लेकिन पहले शादी फिर लड़की, क्यू ठीक है क्रिष्ना?”
क्रिष्ना ने इस बार मुस्कुराकर हा कहा।
“ठीक है”अब विक्रम ने बंसी को पुकारा और बाद मे गंभीर होकर किशोरीलाल को बोला,”यार तू रुकता तो अच्छा होता, चलो ठीक है, तु जाना चाहता है तो मै रोकुंगा नही पर तेरी टीकीट कहा है? किस तारीख को ट्रेन है तेरी?”
किशोरीलाल ने तुरंत टीकिट्स् उसे दी और कहा,”कल सुबह की है।”
विक्रम ने टिकेट्स देखी और बंसी के पास गया और बोला,”आप मेरे लिये एक काम करोगे?”
बंसी ने कहा,”बोलो बाबा ज़रूर करूँगा।”
“ये टिकेट्स केंसल करवा दो प्लीझ्।” विक्रम ने उसे टिकेट्स दे दी। बंसी वही खड़ा होकर सब को देखने लगा।
किशोरीलाल मना करने लगा लेकिन विक्रम चिल्लाकर बंसी को बोला,”अबे साले जा ना”
इस गाली से फिर सब स्तब्ध हो गये और फिर खामोशी छा गयी। सब विक्रम के गुस्से को देखने लगे लेकिन विक्रम बोला,”अरे मेरी तरफ सबलोग क्या देख रहे हो मै परसो क्रिष्ना से शादी कर रहा हु, कल सगाइ कर रहा हु तो ये मेरा साला हुवा ना और अभी अभी आप लोगो ने बताया था की मेरी शादी मे आपलोग ज़रूर आओगे तो परसो ही शादी है तो रुकना तो होगा ही ना। इसीलिए टिकेट्स केंसल करवा रहा हु अब बंसी, मेरे बाप, जल्दी जा और इस के पहले ये केपी कुछ बोले टिकेट्स केंसल करवा दे जा।”
बंसी मुस्कुराकर कुछ भी आगे सुने बीना एक युवान की रफतार से रफुचक्कर हो गया और क्रिष्ना की आँखो ने फिर पानी बरसाना शुरू किया और किशोरीलाल धब्ब कर के सोफे पे बैठ गया और मस्ती के स्वर मे बोला,”साले,आख़िर तूने हमे रोक ही लिया ना। लेकिन मै जनता हु शादी की जल्दी क्यू तुज को पड़ी है।” इतना कहकर उसने क्रिष्ना की और इशारा किया और बोला,”इसे थोड़ा आराम करने देना, मेरे बाप।”
“आराम हराम है दोस्त, यहा तो चट मंगनी और पट ब्याह और परसो ही हनीमून और इसी साल मे तेरी बहु।” विक्रम ने फिर क्रिष्ना को छेडा।
और सब की हसी छुट गयी।
टिकेट्स केंसल हो गया और उसी शाम को सब लोग सगाइ की तैयारी मे लग गये और विक्रम ने खुद फोन मे ही सब को दूसरे दिन इन्वाइट कर लिया और रात के 1 बजे तक तो हवेली का रूप ही बदल दिया गया। केवल चन्द घंटो की मेहनत ने पूरी हवेली की शक्ल ही बदल दी। क्रिष्ना को सोने दिया गया था। सब खुश थे। लेकिन विक्रम की मंगनी और शादी को लेकर कल ना जाने क्या होनेवाला था ये शायद कोई नही जनता था ?
दूसरे दिन सुबह से विक्रम की हवेली पर धुम मची हुई थी जो शाम तक चली। बंसी, किशोरीलाल, राजेश्वरीदेवी ने मिलकर सब तैयारीया कर डाली। शाम को विक्रम ने ब्राउन कलर का जोधपुरी पहना था और क्रिष्ना ने आसमानी कलर की बेंगोली साडी पहनी हुई थी। दोनो बच्चे को राजेश्वरीदेवी ने सम्भाला हुवा था। जोधपुर के खास मेहमानो की हाजरी मे सगाइ की विधी सम्पन्न हुई और सब लोग दावत मे खाना खा रहे थे। विक्रम ने खाने के वक़्त किशोरीलाल का परिचय जोधपुर के खास बड़े लोगो, जैसे बड़े बड़े उध्योगपति, कलेक्टर, मेयर, कमिश्नर, आर्मी के बडे ओफिसर्स, पुलिस ओथोरिटीस और साथ जोब करनेवाले जवानो से करवाया। बाद मे एक शानदार भोजन समारंभ शुरु हुवा।
फिर किशोरीलाल राजेश्वरीदेवी के पास आया और दोनो बच्चे को खाना खिलाया विक्रम ने बंसी को पहलीबर नौकर नही आदमी समजकर अच्छे कपडे पहनाकर मेहमानो के स्वागत के लिये खडा किया था। वैसे बंसी ने खुद ही सभी व्यवस्था सम्भाली हुई थी। दोनो बच्चो ने जब खाना खा लिया तो किशोरीलाल फिर विक्रम के पास जाने लगा। उस ने देखा की क्रिष्ना अकेली थी तो वो वहा पास जा के बोला,”वीकी कहा गया?”
“जी, वो अभी आता हु कह के 15 मींनीट से गायब है, मै भी पहलीबार सब से मिल रही हु और मै अकेली पड रही हु। मै भी कब का इंतजार कर रही हु, अब ना जाने ये कहा चले गये।” क्रिष्ना ने कुछ गभराकर जवाब दिया।
“मै देखता हु” बोलकर किशोरीलाल विक्रम को यहा वहा देखने लगा। फंक्शन हवेली के बाहर के गार्डन मे रखा गया था। सब लोग मिलाकर कुल 69 लोगो के बीच ये सगाइ की विधी सम्पन्न की गयी थी।
विक्रम को ढुंढते हुए किशोरीलाल हवेली के अंदर गया और दिवानखने मे आ गया, उस वक़्त तो वहा कोई नही था। लेकिन किशोरीलाल के कानो पर उपर विक्रम के रूम के पिछे से कुछ आवाज़ आती सुनाइ दी। वो धीरे धीरे विक्रम के रूम तक पहुचा और अंदर जाक के देखा, वहा भी कोई नही था। आवाज अब स्पष्ट सुनाइ दे रही थी, जिस मे एक आवाज़ तो विक्रम की ही थी और कहा से आ रही थी वो कोंस्ंट्रेट कर के वो विक्रम के रूम मे आ गया और वहा से पिछे की बाल्कनी मे आ गया जो बंध था, लेकिन आवाज़ क्लीअर आने लगी तो उसने सोचा की पहले सुन लू की माजरा क्या है और वो सुन ने लगा।
विक्रम,”देख अभी तू चला जा मै तुजे ज़रूर मिलुंगा, पहले ये सब ख़तम होने तो दे।”
आवाज,”हम का उल्लु समज के रखा है का विक्रम बाबू, आज हम चुप रहा तो फिर का मतलब।”
“अरे भाई मेरे पर भरोसा तो रख मूज़े कम से कम अपने दोस्त की लाज तो रखने दे भाई।”विक्रम
“तो हम आप के दुश्मन है का, देखो विक्रमबाबू दोस्ती का हाथ हमरी ओर से नही उठा था, आप को हमरी जरुरत थी, हम का नही, का समजे !” ।,
विक्रम,”हा वो तो मै भी जनता हु लेकिन केपी भी तो मेरा दोस्त है।”
आवाज,”विक्रमबाबू आप के दोस्त को बताय दु सब, तो दोस्ती एक ही मिनट मे ख़तम, बोलो।”
विक्रम,”तु मूज़े ब्लेकमेल कर रहा है क्या?”
आवाज,”इसे ब्लेकमेल समजना है तो इ ही सही लेकिन आप ने हमरे साथ वादा किया था और हमरी बहीन का, का करे बोलो? उसे कुवे मे डाल दे का।”
विक्रम,”देख भैया अभी मेरी पोजिशन ख़तरनाक हो चुकी है। तु मूज़े दो दिन दे दे मै तुजे सबकुछ समजा दूँगा। अभी तू यहा से खाना खा और चुपचाप चला जा मै तुजे मिलने या तो आज रात या परसो रात ज़रूर आउंगा।”
आवाज,”आज रात अगर नही आवे तो?”
विक्रम,”अरे तो परसो रात तो आता हु ना।”
आवाज,”अपनी सुहागरात के बाद, का?”
विक्रम,”अरे तो क्या तुज से हर बात पुछ के किया करू क्या?”
आवाज,”हर बात मे का हम टांग अडायत है विक्रमबाबू, लेकिन इ तो हमरी बहीन का सवाल है। आप के इहा का ऐसा होता है की शादी किसी और से और सुहागरात किसी ओर से का? हमे गंगा किनारेवाला समज के रखा है का? देखो विक्रमबाबू अगर आज हमरी जिभ खुल गयी तो कही के ना रहोगे। अभी का अभी ये शादी केंसल कराइ दो वरना आप जानते है हम का, की हमरी बहीन की इज़्ज़त का कैसन बद्ला हम ले सकत है।”
विक्रम,”देखो भैया आज तो मेरे बाप को भी क्रिष्ना से शादी करनी पड़ेगी। तु तो बदला लेने शायद कल आयेगा लेकिन आज मैने शादी नही की तो आज ही मरुंगा और साथ मे तू भी मरेगा और ठेंगा रह जायेगा। बात को समजा कर अगर मै क्रिष्ना से शादी करता हु तो तेरा या तेरी बहन का क्या नुकसान होगा? ये तो सोच की अगर मेरी शादी क्रिष्ना से हो गयी तो कितने लोगो के चेहरे पर खुशी आयेगी। और बाद मे तेरा काम तो हो ही जायेगा ना। तु क्यू टेन्शन ले के फिर रहा है। मै तुजे धोखा दे रहा हु क्या? क्या मैने तुजे दावत नही दी मेरी शादी की ? अगर मूज़े विश्वासघात ही करना होता तो मै तुजे सामने से इस पार्टी मे बुलाता क्या ? मै जानता हु की इस शादी को लेकर तू हंगामा ज़रूर करेगा, फिर भी मैने तुजे दावत दी, क्यू ? जानता है ? अरे बात को समजा कर ये सब मै हम सब की भलाइ के लिये कर रहा हु।”
आवाज,”ठीक है विक्रमबाबू लेकिन हमरी बहीन का, का होगा, बोलो तो ?”
विक्रम,”अरे मे शादी कर रहा हु, तेरी बहन को कहा बरबाद कर रहा हु ? मैने कब कहा की तेरी बहन से मेरे रिश्ते की छुट्टी। अरे मेरे भाइ वो भी मेरा ही फ़ैसला था और ये भी मेरा फ़ैसला है।”
आवाज,”हमरी समज मे कछु नही आता है बाबू, हम का एक ही बात समज मे आये हेत की आप हमरी बहीन के साथ विश्वासघात करेत हो और अगर इ बात सच्ची हुइ तो हम से बुरा कोई ना होगा, का समजे।”
विक्रम,”मेरे बाप, मै जानता हु की अगर मैने तेरी बहन को धोखा दिया तो तू क्या क्या कर सकता है ? लेकिन आज तो मेरी हालत तेरे डर से भी ज़्यादा खराब है। अभी तो तू सिर्फ़ तमाशा देख मै तुजे परसो समजाने आता हु ना। अगर तुजे सही ना लगे तो मूज़े बरबाद कर लेना, बस अब खुश।”
आवाज,”लेकिन इ बात आप अपने दोस्त को करो ना ता की सारा झंझट ही ख़तम।”
विक्रम,”मूज़े मरना है क्या? अगर मैने मेरे दोस्त को सब बताया तो क्या होगा? और वैसे भी क्रिष्ना के पास मेरा दो साल का बच्चा है। आज तो मेरे शयतान को भी शादी करनी पड़ेगी मेरे बाप।”
आवाज,”वहा आप का बच्चा है और इहा कछु हो गया तो का होगा बाबू?”
विक्रम,”एक बात बताओ अगर मैने तेरी बहन को कही भी छुआ होता तो क्या तू मूज़े ज़िंदा छोडता? इतना तो समज जब मै कह रहा हु की तुजे या तेरी बहन को कोई नुकसान नही करूँगा फिर भी इतनी नाराजगी! अरे ये बच्चा मेरा है ये मूज़े भी कल ही मालूम हुवा तो क्या मै क्रिष्ना को छोड़ दु?, और बोल दु की जो करना है वो कर ले जा मेरा कोई रिश्ता नही तुज से। तु जानता है ऐसा कहने से मेरे कितने रिश्ते टूट जायेंगे। भाइ जैसा दोस्त खो जायेगा। ये दौलत, ये शोहरत सब मिट्टी मे मिल जायेगा। उपर से वो लड़की भी मूज़े प्यार करती है। उसे बीच रास्ते मे छोड़ दु क्या ? दुनिया मे तेरी बहन से बढकर किसी और की कोई इज़्ज़त नही है क्या ? तुजे सिर्फ़ अपनी बहन की पड़ी है, क्रिष्ना की नही क्या?”
आवाज्,” विक्रम बाबू हम अपनो के सिवा किसी और के बारे मे नही सोचा करते, का ? तभी तो हम आज तक ज़िंदा हु वरना कब का मर चुका होता, का ? और अगर आज भी हम हमरी बहीन के बारे मे ना सोचु तो आप का, का भरोसा बोलो?”
विक्रम,”अरे मेरे बाप इतना कह रहा हु फिर भी तेरी खोपडी मे कुछ नही आता क्या ?”
आवाज,”हमरी खोपडी मे इ बात नही आवत है की आप शादी के बाद का करोगे बोलो तो?”
विक्रम,”ये बात बताने के लिये मै परसो आ रहा हु ना और वैसे भी तेरे हाथ मे, मै हु, तू मेरे हाथ मे नही। अगर तुजे सही ना लगे तो जो तेरी मरजी, मेरे साथ कर लेना बस।”
आवाज,”ठीक है विक्रमबाबु, हम आप के उपर एक बार और भरोसा कर लेत है, लेकिन याद रखियो बाबू की धोखा दिया तो किस्सा ख़तम, का समजे?”
और धीरे धीरे चलने की आवाज़ आई। लेकिन किशोरीलाल वही खड़ा रहा। फिर उसने मेहसूस किया की विक्रम भी जा रहा है तो वो जल्दी से नीचे उतरकर पार्टी मे शामिल हो गया और देखने लगा की जब विक्रम आता है तो उसके साथ कौन है जो उसे ब्लेकमेल करने की कोशिश कर रहा है ? लेकिन उसके आश्चर्य के बीच विक्रम के साथ उसके साथ नौकरी करनेवाला एक फौजी था। दोनो हसी खुशी से आ रहे थे। किशोरीलाल के दिमाग की बत्ती जली और उसे रामेश्वर याद आया। कही वो तो ब्लेक्मैल नही कर रहा विक्रम को क्या?
किशोरीलाल तुरंत उसे ढुंढने लगा और बंसी उसे मिल गया और उसने बंसी को कोने मे खीचा और पुछा,”बंसी, रामेश्वर को निमंत्रण दिया था क्या और वो आया है क्या?”
बंसी ने जवाब दिया,”अरे भैया वो तो कब से वहा बैठा बैठा खाना खा रहा है।”
“कहा है वो?” किशोरीलाल ने पुछा।
बंसी ने एक कोने मे दिखाया किशोरीलाल । बंसी को लेकर उसके पास जाने लगा वो जान ना चाहता था की अगर रामेश्वर अभी अभी आया है तो उसकी थाली मे अभी कुछ भी खाया नही होगा और अगर उसकी थाली मे कुछ नही हुवा नही है तो वो ही था जो विक्रम को ब्लेक्मैल कर रहा था।
वो ओल्मोस्ट दौड के बंसी को लेकर रामेश्वर के पास पहुचा। देखा तो रामेश्वर की डीश तो पूरी तरह बिगडी हुई थी। रोटी, सब्जी, दाल और चावल तक के दाग डीश मे मौजुद थे। दिख रहा था की वो तो कब से खाना खा रहा है। तो क्या वो ऐसी जुठी डीश छोड के गया होगा। ऐसा होना भी नामुमकिन है क्यू की ऐसी जुठी डीश कैसे सम्भलती वहा।
जब बंसी ने परिचय करवाया तो वो तुरंत खड़ा हो के किशोरीलाल से मिला और उसके चेहरे पर कोई शिकायत, गभराहट या नाराजगी के भाव नही दिखाई दिये। किशोरीलाल के समज मे कुछ नही आ रहा था। थोड़ी देर के बाद वो वापस चले आये और बंसी ने जब पुछा तो उसने सबकुछ बताया लेकिन बंसी ने कहा की रामेश्वर को मैने बाहर जाते हुये देखा ही नही, हा बाबा (विक्रम) ज़रूर बाहर गये थे और वापस भी आये।
किशोरीलाल की समज मे कुछ भी नही आ रहा था और उसने सोचा की ये पार्टी ख़तम होने के बाद वो ज़रूर विक्रम से बात करेगा।
रात को 11।30 बज गये थे। किशोरीलाल और राजेश्वरीदेवी दोनो रूम मे आये और दोनो बच्चे को साथ सुला दिया और किशोरीलाल ने सब बात राजेश्वरीदेवी को बताइ और वो भी सोच मे पड गयी। दोनो सोच रहे थे की आख़िर विक्रम क्या खेल सब के साथ खेल रहा है? किशोरीलाल ने सोचा की विक्रम से अभी बात कर ही लेते है और वो रूम के बाहर आया तो उसे बंसी मिला उसने बंसी से भी बात दोहराइ और दोनो ने सोचा की विक्रम से बात कर ही लेते है।
इधर विक्रम हवेली पर अपने रूम मे था तो जैसे ही किशोरीलाल और बंसी वहा पहुचे रूम के अंदर से क्रिष्ना और विक्रम की आवाजे आ रही थी। दोनो वहा रुके और किशोरीलाल ने इशारा किया को थोड़ी देर के बाद आते है। एक न्युली एंगेज्ड कपल को डीस्टर्ब करना अच्छा नही होता इसीलिये दोनो ने थोड़ी देर गार्डनमे बैठने का फ़ैसला किया और वहा जा के बैठ गये।
इधर विक्रम क्रिष्ना के करीब था। अभी अभी क्रिष्ना बाथरुम से फ्रेश होकर आई थी और विक्रम पहले फ्रेश हो चुका था। क्रिष्ना को अभी दूसरे रूम मे जाना था अपने बच्चे के पास, लेकिन विक्रम के कहने पर वो वहा ही फ्रेश होने को राजी हुई थी। वैसे भी अब तो सगाइ हो चुकी थी तो विक्रम वैसे भी उसका होनेवाला पति हो चुका था और वो भी बड़ी बड़ी हस्तियो के सामने ये हुवा था इसीलिए क्रिष्ना को अब कोई ऐतराज नही था।
क्रिष्ना ने अब ब्लॅक बोर्डर वाली लाल कलर की साडी पहन रखी थी। विक्रम ने देखा की क्रिष्ना आयने के सामने खड़ी खड़ी बाल सवार रही है तो उसने पिछे से जा के उसे कस के पकड़ लिया। आयने मे क्रिष्ना को विक्रम की नियत साफ दिखाई दे रही थी। उसने चेहरा घुमाकर विक्रम की ओर देखा। क्रिष्ना की बड़ी बड़ी आँखो मे नींद भरी हुई थी और विक्रम की छोटी आँखो मे मस्ती। विक्रम ने सीधी ही अपने होठ आगे कर के चूमने की कोशिश की, लेकिन क्रिष्ना ने हाथ लगा दिया और बोला,”अभी नही।”
विक्रम,”अरे मेडम अब तो मै आप का होनेवाला पति हु, अब तो मूज़े हक होना चाहिये प्लीज।”
क्रिष्ना ने हाथ छुडाकर थोड़ी दूर जाते हुये कहा,”सही है लेकिन हक की तो बात ही नही है यहा।”
“तो फिर?”विक्रम ने आश्चर्य से पुछा।
“विक्रमबाबू, हक तो दो साल पहले आप ने छीन लिया था और जिस्म तो कई बार मे बता चुकी हु, लेकिन आखरीबार की रात को मै भूल नही पा रही हु।” क्रिष्ना की बड़ी बड़ी आँखे तेज़ हो चुकी थी।
विक्रम,”क्रिष्ना प्लीज उसे मत दोहरावो, मै माफी मांग चुका हु।”
“आप का हक है विक्रमबाबू, लेकिन मै लड़की हु, और जो मूज़े पीडा उस दिन हुई थी, मूज़े उसकी याद आते ही मेरे रोंगटे खड़े हो जाते है।” क्रिष्ना की आँखे फिर से गीली हो गयी।
“देखो तुम रोना मत, अगर तुम नही चाहोगी तो कल भी मै तुजे हाथ नही लगाउंगा।, मेरा प्रोमीस है तुज से।” विक्रम वही बैठ गया और उपर देखने लगा।
क्रिष्ना थोड़ी देर वही खड़ी रही और फिर धीरे से विक्रम के पास आई और उसके पैरो के पास बैठ गयी और बोली,”विक्रमबाबू, मेरी जिन्दगी आप को समर्पित है, मै तो अपने आप को आप के लायक ही नही समजती। सिर्फ़ मेरा डर है जो ये सब करने से मूज़े रौक रहा है, वरना मेरा जिस्म से जब भी जी चाहे खेल लेना, मै कभी भी इनकार नही करुंगी। एक बार डर खत्म हो जायेगा तो अपने आप ही मै समर्पित हो जाउंगी।” क्रिष्ना ने विक्रम का हाथ पकड़कर बैठ गई।
“क्यु अपने आप को कोस रही हो क्रिष्ना, मे ही जिम्मेदार हु तेरी इस हालत का। मै अभी भी तेरा डर दूर करना चाहता हु, लेकिन तेरा डर ही मेरी मजबूरी बन बैठा है, अब मै क्या करू बोल?” विक्रम ने क्रिष्ना का चेहरा अपने हाथो मे लेकर पुछा।
“आप एक रात रुक जाइये ना, फिर कल रात को…।।” क्रिष्ना ने अधूरा छोड़ के नज़र नीचे डाल दी।
“क्रिष्ना, क्रिष्ना तेरी यही हरकत मूज़े बेचैन कर देती है। अब जल्दी से यहा से चली जा नही तो मुज पे फिर नशा चढ़ जायेगा तो आज ही लड़की पैदा हो जायेगी।” विक्रम ने मूह घुमाकर आँखे बन्ध कर के बोल दिया।
क्रिष्ना थोड़ी देर रुकी और फिर खड़ी हुई और धीरे धीरे रूम से बाहर जाने लगी। । नज़रो से विक्रम उसे देखता रहा। अचानक क्रिष्ना ने पलटकर विक्रम को देखा। दोनो की नज़रे एक हुई और क्रिष्ना दौडकर विक्रम से लिपटकर उसके होठ पर अपने होठ रख दिए और धीरे से बोली,”ये आप को मेरे प्यार का तोहफा।” फिर पलटकर भागने लगी।
लेकिन आई बाजी को कौन छोडता है। विक्रम ने पलक जपकते ही हाथ का झटका दिया और साडी का पल्लु विक्रम के हाथ मे और साडी कमर तक उतर गयी। क्रिष्ना को धक्का लगा और वो गीरते गीरते विक्रम की चौडी छाती पर अटकी। विक्रम के हाथ उसकी कमर पर फैल गये और उलटे मूह ही विक्रम ने उसके कंधे को चूमना शुरू किया और कह दिया,”गिफ्ट देना हमे भी आता है मेडम।”
अचानक हमले से क्रिष्ना सम्भल पाये इसके पहले विक्रम के हाथ उसके पेट पर और होठ उसके कंधे पर पड चुके थे। साडी कमर पर और पल्लु जमीन पर। और विक्रम के हाथ और होठो ने जादू शुरू किया। क्रिष्ना की साँसे तेज़ होने लगी। लेकिन डरने की वजह से बदन कापने लगा था।
क्रिष्ना ने पलटकर विक्रम के चेहरे को उठाया। आज विक्रम सयाना बनकर चुपचाप खड़ा रहा और क्रिष्ना की कमर छोड दी। इस बार जिस्म खुला रखने से क्रिष्ना ने कोई जल्दी नही की और न ही पल्लु वापस रखने की और ऐसे ही विक्रम को देखने लगी और बोली,”विक्रमबाबू अभी सिर्फ़ आधा गिफ्ट चलेगा, आधा कल” इतना कहकर वो शरमा गयी।
उसकी बड़ी बड़ी आँखे इतनी तेज़ घुम रही थी की देखनेवाला अपने आप ही मदहोश हो जाये। फिर भी आज ना जाने क्यू विक्रम अपने आप मे था और शायद आज पहलीबर उसे एक स्त्री का एहसास हो रहा था। आज तक सिर्फ़ शराब के नशे मे ना जाने कितनी जवानी के मजे वो लुट चुका था। लेकिन आज खुद उसकी होनेवाली बीवी उसे वो सबकुछ समर्पित कर रही थी जिस के लिये वो हमेशा बेकरार रहता था।
विक्रम ने पल्लु सम्हालकर फिर से साडी पर रखने की कोशिश की लेकिन रेशम की साडी पर से पल्लु बार बार गीर जाता था क्यूकी क्रिष्ना दोनो हाथ नीचे जुकाये खामोश खड़ी रही थी और नीची नज़र रख के चुपचाप खड़ी हुई थी। दो तीन बार विक्रम ने पल्लु ठीक किया लेकिन पल्लु सरककर नीचे ही आ जाता था। विक्रम की परेशानी बढ़ गयी और उसकी साँसे अटकने लगी। क्रिष्ना ने नज़र उठाइ और देखा की विक्रम को पल्लु ठीक से रखना नही आ रहा है तो वो हल्के से मुस्कुराइ।
ये देखकर विक्रम और भी गिन्नाया,”बडी बेशरम है ये तेरी साडी। ठीक ही नही हो रही है। क्रिष्ना हसकर बोली,”ये मेरे कपड़े भी आप को देखकर आप जैसे ही हो रहे है।”
विक्रम को कुछ नही सुज रहा था की वो क्या करे और फिर बोला,”अरे तुम इसे ठीक कर के यहा से जाओ ना। क्यु मूज़े परेशानी मे डाल रही हो?”
क्रिष्ना की हसी जोरो से छुट पड़ी और बोली,”महान हो आप मेरे पतिदेव जो आज परोसा हुवा खाना ठुकरा रहे हो। ठीक है आप की मर्ज़ी, मै तो वापस ले लेती हु।” इतना कहकर वो धीरे से अपने पल्लु को अपने कंधे पर ले गयी।
लेकिन इतना सुनते ही विक्रम ने जटके से पल्लु को हटाया और बोला,”तुम औरतो का यही दुख है ना जाने कब क्या करती हो। प्यार मांगो तो इनकार और साधु बनो तो खुद सैतान बनाने पर तुल जाती हो” इतना कहकर वो क्रिष्ना को जोरो से लिपट गया और क्रिष्ना की आहे नीकल गइ।
विक्रम तुरंत दूर हुवा और बोला,”क्या हुवा ?”
क्रिष्ना ने गेहरी सासे लेते हुये इशारा किया की उसकी जबरदस्ती से सासे अटक गइ थी। विक्रम ने हसकर जवाब दिया,”ये तो कल की थोड़ी सी तैयारी करनी है ना, तुम अपने यौवन को आज सारी रात समजा दो की कल कोई नखरे नही चाहिये।
क्रिष्ना लाल हो गयी और हाथ मूह पे रखकर बोली,”हाये राम, कितनी बेशरम बाते बोल रहे हो आप।” उसने फौरन पल्लु से शरीर को समेट लिया और चलने लगी। फिर विक्रम ने ज़टके से अपनी और खीच लिया और बोला,”मेडम एक और प्लीज।”
और क्रिष्ना ने अपने होठ विक्रम के होठो पर लगा दिये। और उस के बाद क्रिष्ना बोली,”अब बाकी का कल।”
“लेकिन आज रात का क्या?, कैसे कटेगी ये रात ?” विक्रम आहे भरते हुये बोल उठा।
“सिर्फ़ एक रात बस। कल से कोई रोकनेवाला नही है।” क्रिष्ना की हसी छुट रही थी।
“ओके, अब जाओ यहा से जल्दी,” विक्रम ने मजबुरी से देखते हुये इशारा किया।
क्रिष्ना ये सुनकर फिर से विक्रम से लिपट गइ,”एक शयतान आज साधु बन रहा है। मुज से भाग्यशाली आज शायद इस जहान मे और कोइ नही है, थेंक यु विक्रमबाबु,” और क्रिष्ना दौडकर बाहर चली गइ।
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कुछ देर के बाद किशोरीलाल और बंसी विक्रम के पास पहुचे और उसे देखते ही विक्रम ने उसे रूम मे बुलाया और सब बैठ गये। रात को करीब 11।45 हो चुके थे। जब किशोरीलाल ने बात छेडी तो विक्रम ने जो बताया वो कुछ ऐसा था:
विक्रम को ब्लॅकमेल करनेवाला रामेश्वर ही था। जब भी रामेश्वर उस औषधी से प्रिन्स की शारिरीक शक्तियो को ख़तम कर देता था तो साथ मे इसी बात को लेकर विक्रम को ब्लॅकमेल भी करने लगा था और एक बार उसे पता चल गया की विक्रम, क्रिष्ना और क्रिष्ना के पिताजी की चाल है प्रिन्स को फसाने की तो वो और ब्लॅकमेल करने लगा। विक्रम के पिता गंगाधर ने जो अग्रीमेन्ट किया था और उसकी एक कॉपी जिस अन्जान आदमी के पास थी वो आदमी और कोई नही बल्की रामेश्वर है। उस एग्रीमेन्ट को लेकर भी रामेश्वर विक्रम को परेशान करता रहा। फिर तो अपनी गुंगी बहन बीजली का ब्याह विक्रम से करवाना चाहा। विक्रम के पास कोई और चारा नही था तो हा बोल दिया। लेकिन वो प्यार तो सुनंदा से करता था और बाद मे क्रिष्ना उसके जीवन मे आ पड़ी तो रामेश्वर बहुत नाराज़ हुवा था और विक्रम को धमकी दे रहा था की अगर विक्रम ने बीजली से शादी नही किया तो वो जान से मार देगा। अब तक विक्रम की हालत को देखकर रामेश्वर चुप था क्युकी विक्रम सुनंदा की मौत के सदमे मे था, जब क्रिष्ना की बात आइ तो रामेश्वर अपने असली रुप मे आ चुका था।
रामेश्वर बहुत ही खतरनाक आदमी था। इतना कहकर विक्रम नीची नज़र करके बैठ गया।
किशोरीलाल,”तू हर बात पहले क्यू नही बताता?”
“दोस्त, मेरे बाप ने ना जाने क्या सोचकर वो अग्रीमेन्ट बनया है की मेरा जीना हराम हो चुका है। मेरी ही ज़िंदगी अनगीनत हाथो मे बट चुकी है। इस से बचने के लिये नशा करता हु तो नशे मे और पाप हो जाते है। मै तुजे और तेरी फेमीली को कभी बीच मे लाना नही चाहता था। अगर मूज़े मालूम होता की तू यहा आनेवाला है तो मे कुछ दिन तक ये सारी हरकत बंध कर लेता और तुजे कभी भी महसूस नही होने देता। लेकिन मेरी बदकिस्मती की तू यहा है और सब सामने आ रहा है। रामेश्वर चाहता है की मै उसकी गुंगी बहन बीजली से शादी कर लु और मेरी चाहत सुनंदा आज दुनिया मे नही है। मैने मान भी लिया था लेकिन दो साल पहले की नशे की हालत मे मैने क्रिष्ना को बरबाद किया और क्रिष्ना भी मूज़े चाहती है तो…” विक्रम चुप हो गया।
“तो क्या तू मजबूरी मे क्रिष्ना से शादी कर रहा है?” किशोरीलाल ने पुछा।
“केपी मेरी ज़िंदगी मे एक तेरे सिवा जो था वो सुनंदा थी और सुनंदा के जाने के बाद और तू बहुत दूर है तो मेरी ज़िंदगी मे बहार बन के सिर्फ़ क्रिष्ना ही आ सकती है। मै क्रिष्ना के साथ मजबूरी मे नही, लेकिन सचमुच हम दोनो एकदुसरे को प्यार कर बैठे है। और वैसे भी अब मेरी ज़िंदगी मे क्रिष्ना और हमारा बच्चा ही तो बचे है।” विक्रम ने कहा।
किशोरीलाल बोला,”लेकिन तूने तो रामेश्वर को प्रोमिस दिया है की तु बिजली से शादी करेगा।”
विक्रम ने हा कहा।
“देख, वीकी, ये तो बिजली और क्रिष्ना दोनो के साथ धोखा है।” किशोरीलाल बोल उठा।
“मै जानता हु मेरे दोस्त, लेकिन अभी तो मेरे पास कोई दुसरा रास्ता ही नही है, शादी के बाद यही बात मै समजाने के लिये रामेश्वर के पास जानेवाला था। लेकिन वो इतना जड आदमी है की माननेवाला नही है। इसीलिए अब मैने सबकुछ ईश्वर पे छोड़ दिया है। वो जो भी करेगा कुछ अच्छा ही करेगा और अगर ज़रूरत पड़ी तो मै दोनो के साथ भी शादी करने के लिये भी तैयार हु। मेरी ज़िंदगी का तो कोई वजुद नही है लेकिन अगर किसी और की ज़िंदगी सवरती है तो मूज़े कोई ऐतराज नही है।” विक्रम नीची नज़र करके बोल रहा था।
किशोरीलाल,”तू क्या बोल रहा है विकी ? जानता भी है की तू क्या बोल रहा है और ऐसा करने से तो दोनो लडकीयो की ज़िंदगी बरबाद हो जायेगी वीकी। तु रामेश्वर से क्यू डरता है। अब मै तुजे वो अग्रीमेन्ट से आजाद जो कर रहा हु तो वो क्या कर सकता है तेरे अग्रीमेन्ट को लेकर।”
“तु मूज़े उस अग्रीमेंट से कैसे आजाद कर सकता है?” विक्रम ने पुछा।
किशोरीलाल,”सुन वीकी, मै तेरी शादी के बाद जुनागढ जा रहा हु। कुछ काम निपटाने के बाद एक महीने के बाद हमदोनो कन्याकुमारी जायेंगे। बाद मे होस्पिटल मे डोक्टॅर के पास से सुनंदा की रिपोर्ट के बारे मे क्लीयरंस सर्टीफिकेट लेंगे और बाद मे उस फोटोग्राफर को ढुंढेगे जिस ने वो समुंदर किनारेवाली तसवीरे खीची है। मुजे नही लगता की मुश्किल होगा क्यूकी कन्याकुमारी मे मुश्किल से एक या दो फोटोग्राफर होंगे। वहा से पुलिस ओथोरीटी से नो ओब्जेक्शन सर्टीफिकेट लेकर मि. सेन को देंगे जो मेरे नाम से नया अग्रीमेन्ट तैयार होगा। उस एग्रीमेन्ट मे आख़िर तो कोई शर्त होगी के कोई तो तुजे आजाद कर सकता है।”
“ठीक तरीके से तो मालूम नही लेकिन शायद तेरा ऐसा करने से मूज़े आज़ादी मिल सकती है।” विक्रम ने आहे भरकर जवाब दिया।
किशोरीलाल,”वीकी एक बात और मे पुछु?”
“पुछ, यार तेरा हक है ये तो।” विक्रम ने आँखे बन्ध रखते ही जवाब दिया।
“क्या तेरे सर पर पैसो की उधारी है?” किशोरीलाल ने पुछ ही लिया।
“जुठ नही बोलुंगा, हा थोड़ा बहुत है। यस उस अग्रीमेन्ट से आज़ादी के बाद वो मामुली है और सबकुछ ठीक हो जायेगा।” विक्रम ने आँखे खोलकर आराम से जवाब दिया।
“कितना है?” किशोरीलाल ने पुछा।
“अन्दाजा तो मूज़े भी नही लेकिन करीब 1 लाख का होगा।” विक्रम ने आराम से फिर जवाब दिया।
“1 लाख का? और इसे तू मामुली कह रहा है? इतना कम है क्या?” किशोरीलाल के मूह से चीख निकल गयी। (उस समय 1 लाख आज के 10 करोड के बराबर हुवा करता था)
विक्रम लाचार नज़ारो से देखने लगा। किशोरीलाल को उसकी लाचारी की दया आ गयी और वो खड़ा होकर उसके पास आया और विक्रम के कंधे पर हाथ रखकर बोला,”वीकी, आज तक तू चुप क्यू रहा? इन दो सालो मे तूने कितना जेला होगा। । पहले क्यू मूज़े नही बताया? इसका मतलब तूने मूज़े गैर समज के रखा था। मुजे जल्दी ही कन्याकुमारी जाना होगा। वीकी, मेरे भाई ये तूने क्या किया?”
“केपी, मेरी जगह शायद तू होता तो तू भी यही करता और अकेला जेलता सबकुछ। मैने भी तो वही किया जो मेरे हाथो मे था। बस किस्मत ने मूज़े रास्ते का पत्थर बना के रख दिया ये जिस को जब भी कोई भी लात लगा सकता है।” विक्रम की आँखे फिर भीग गयी।
किशोरीलाल ने उसे गले लगा दिया और बोला,”वीकी, मत रो बहुत हो गया अब तेरी ज़िंदगी मे कल से खुशिया ही खुशिया होगी। वादा करता हु जल्दी ही तेरी खुशिया लौट आयेगी।”
बंसी भीगी आखो से दोनो दोस्तो की दोस्ती को देखता ही रह गया था। और सही मे कल विक्रम की जिन्दगी मे बहार लौटनेवाली थी। ये भी कुदरत का खेल था....कभी खुशी तो कभी गम.... अभी तो खुशी का माहोल है.....कल किसने देखा है.....हम नेक्क्ष्ट अपडेट मे विक्रम-क्रिष्ना की शादी मे जरुर शामिल होंगे तब तक बने रहिये इस कहानी पर...
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राधिका माधव
31-Jan-2022 12:25 PM
Very good story suspence barkerar h abhi tak,
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PHOENIX
31-Jan-2022 02:38 PM
Thanks a lot
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🤫
11-Jan-2022 12:18 AM
Very intresting story. Ab ye kya Vikram kuch aur kand kar raha hai lagta h, N jaane kya kya hona baki h. Krishna ki life sanvr rhi ya bikhar rahi kah nahi skte. Lekin kahani Kamal ki likhi h aapne,
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PHOENIX
11-Jan-2022 08:18 AM
धन्यवाद एंजेलजी।
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